विश्व हिंदू परिषद बजरंग दल डोईवाला ने मनाया हरेला पर्व, लगाए वृक्ष
विश्व हिंदू परिषद बजरंग दल डोईवाला ने मनाया हरेला पर्व, लगाए वृक्ष
हरेला पर्व उत्तराखंड
आज विश्व हिंदू परिषद बजरंग दल ( डोईवाला) ने प्रकृति पूजन का प्रतीक हरेला लोक पर्व मनाया जिसमें नगर संयोजक अविनाश सिंह के नेतृत्व में डोईवाला जूनियर हाई स्कूल में विभिन्न प्रकार के वृक्ष लगाए गए जिसमें लीची, पीपल, आम, अथवा फूलों की कई प्रजाति लगाई गई इसमें बजरंग दल डोईवाला के साथ विद्यालय के कई शिक्षक एवं शिक्षिकाएं भी सम्मिलित हुए और उन्होंने अपने हाथों से भी कई वृक्ष लगाएं
विश्व हिंदू परिषद नगर अध्यक्ष राकेश सिंह जी ने हरेला पर्व पर सभी नगर वासियों एवं प्रदेशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं दी अथवा उन्होंने कहा कि हम सभी लोगों को वृक्ष अवश्य लगाना चाहिए यह प्रकृति के लिए बहुत ही जरूरी है कि हम सब लोग कम से कम अपने जीवन काल में एक वृक्ष लगाएं और उसकी देखरेख करें आज के समय में जिस प्रकार वृक्ष काटे जा रहे हैं जिसके कारण जंगल के जानवर रोड पर आ रहे हैं और आने जाने वाले यात्रियों को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ जाता है उन्होंने कहा इस हरेला पर्व के मौके पर हम सभी लोगों को अपने अपने घरों में अथवा जहां भी हो सके वृक्ष जरुर लगानी चाहिए
वृक्ष लगाने वालों में-
विश्व हिंदू परिषद नगर अध्यक्ष राकेश सिंह
नगर संयोजक अविनाश सिंह
प्रखंड सुरक्षा प्रमुख नीरज
नगर सत्संग प्रमुख यश सोनकर
कार्यकर्ता- प्रवीण नैनवाल,ऋषभ तिवारी, अंशु वर्मा ,शिवा सिंह ,आदि कार्यकर्ता मौजूद रहे
जूनियर हाई स्कूल डोईवाला से सम्मिलित हुए-
प्रिंसिपल सरिता बिष्ट, उषा गोड़, सीमा कोठियाल, सपॉर्णी उनियाल, पंकज पंत, लाल सिंह, ज्ञान किशोर, नजीर अहमद आदि
जानिए क्या है यह हरेला पर्व और क्यों मनाया जाता है इसकी कुछ विशेषताएं
हरेला फेस्टिवल उत्तराखंड
कुमाऊं में हरेले से ही श्रावण मास और वर्षा ऋतु का आरंभ माना जाता है।
हरेले के तिनकों को इष्ट देव को अर्पित कर अच्छे धन-धान्य, दुधारू जानवरों की रक्षा और परिवार व मित्रों की कुशलता की कामना की जाती है। हरेले की पहली शाम डेकर पूजन की परंपरा भी निभाई जाती है।
पांच, सात या नौ अनाजों को मिलाकर हरेले से नौ दिन पहले दो बर्तनों में उसे बोया जाता है। जिसे मंदिर के कक्ष में रखा जाता है। इस दौरान हरेले को जरूरत के अनुरूप पानी दिया जाता है।
दो से तीन दिन में हरेला अंकुरित होने लगता है।
सूर्य की सीधी रोशन से दूर होने के हरेला यानी अनाज की पत्तियों का रंग पीला होता है।
हरेले की मुलायम पंखुड़ियां रिश्तों में धमुरता, प्रगाढ़ता प्रदान करती हैं। परिवार को बुजुर्ग सदस्य हरेला काटता है और सबसे पहले गोलज्यू, देवी भगवती, गंगानाथ, ऐड़ी, हरज्यू, सैम, भूमिया आदि देवों को अर्पित किया जाता है। इसके बाद परिवार की बुजुर्ग महिला व दूसरे वरिष्ठजन परिजनों को हरेला पूजते हुए आशीर्वचन देते हैं।
हरेले से पहली शाम डेकर यानी श्री हरकाली पूजन होता है। घर के आंगन से शुद्ध मिट्टी लेकर शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय आदि की छोटी मूर्तियां तैयार की जाती हैं। उन्हें रंगने के साथ बाकायदा श्रृंगार किया जाता है।
डेकरे बनाने का उत्साह गजब का होता है। बच्चे तो उत्सुकता के साथ मूर्तिया बनाने लगते हैं। हरेले के सामने शिव-पार्वती का पूजन कर धन-धान्य की कामना की जाती है।
हरकाली पूजन में पुवे-प्रसाद, फल आदि का भोग लगाया जाता है। हरेले की गुड़ाई की जाती है। पहले से सामूहिक रूप से डेकर पूजन की परंपरा रही है। मोहल्ले और गांव के लोग एक साथ डेकर पूजन करते थे। बाद में प्रतीकात्मक रूप से घरों में पूजन किया जाने लगा।