आपदा के लिए सीमेंटेड आवास जिम्मेदार- आनंद

आपदा के लिए सीमेंटेड आवास जिम्मेदार- आनंद

 

एनसीपी न्यूज़। कोटद्वार। आज़ादी के अमृत महोत्सव के समय जब देश अपना 76 वां स्वतन्त्रता दिवस मनाने जा रहा है ऐसे में पहाड़ी राज्यों में लगातार हो रही बारिश के कारण जो आपदाएं आ रही हैं आखिरकार उसके लिए कौन जिम्मेदार है। आजादी के 76 सालों तक हमने प्राकृतिक संसाधनों का इतना बेतहाशा इस्तेमाल कर दिया है अब हमारे सामने गिने चुने ही प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध हैं। हिमालयी राज्यों की बात करें तो ये बहुत ही नाज़ुक स्थिति में है। हिमाचल प्रदेश में हुई भारी बारिश से आई आपदा ने अरबों के नुकसान के साथ- साथ जहां जान-माल का भी नुकसान किया। वही लगातार हो रही बारिश से उत्तराखंड में अब तक 650 करोड़ का नुकसान हो चुका है। अभी भी लगातार हो रही बारिश के कारण काफी खतरा बना हुआ है, कस्बों व शहरो में जहां नदी नाले उफना कर पुलों को तोड़ चुके हैं, वही ग्रामीण क्षेत्रों में में पहाड़ के पहाड़ दरक कर नीचे आ रहे हैं। जिससे ग्रामीणों के सामने आजीविका का संकट भी उत्पन्न हो गया है। 76 सालों में पर्यावरणविदों ने पर्यावरण को बचाने के लिए विभिन्न सुझाव दिए लेकिन उनमें से कितनो पर अमल हो पाए यह एक विचारणीय प्रश्न है। एनसीपी न्यूज़ की टीम ने एक ऐसे ही ग्रामीण क्षेत्र का दौरा किया जहां आज भी उम्दा खेती होती है। इस क्षेत्र का नाम है घाडक्षेत्र।

घाडक्षेत्र की ग्राम सभा तच्छाली स्यालिंगा में जब हमारी टीम पहुँची तो वहाँ हमारी मुलाकात हुई ग्रामीण आनंद सिंह से। जब हमने उनसे जानना चाहा इस आपदा का कारण क्या है तो उन्होंने बताया कि आपदा से निपटने के लिए सबसे पहले पहाड़ों से पलायन को रोकना होगा। नदी नालों में खनन रोकने के लिए सीमेंट की फैक्ट्री बंद करवानी होगी। उनका कहना है कि जैसे पहले पहाड़ों में खेती करते हुए जो पत्थर निकलते थे उन्हीं पत्थरों से गांवो में मकानों का निर्माण किया जाता था। इससे खेती भी बेहतर होती थी व सुरक्षित मकानों का निर्माण भी होता था। आनन्द कहते हैं कि पहाड़ों में रोजगार है परंतु करने वालों की कमी है। आज से 100 साल पहले भी इंसान पहाड़ों में रहा वहीं उन्होंने अपनी खेती और  पशुपालन कर अपने लिए मकान बनाये। आज के दौर में मनुष्य जीवन चलाने के लिए शहर की ओर दौड़ रहा है। कहते हैं कि जब इंसान शहर में जाएगा तो उसको रोटी, कपड़ा और मकान की भी आवश्यकता होगी। कहते हैं कि जब कम समय में मकान तैयार करने के लिए इंसान सीमेंट, रेता, ईट का प्रयोग करेगा तो इसके लिये जमीन में खुदाई भी होगी और खुदाई होगी तो नदी नाले भी तैयार होंगे। कहते हैं कि इसी कारण नदी नालों में कटाव होता है जिस कारण पहाड़ों से मिट्टी, पत्थर टूट के उन गड्ढों की भराई करते हैं। जिसके कारण पहाड़ों में भूस्खलन या आपदा आ रही है। आनन्द कहते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग व बादल का अति बरसना का  मुख्य कारण शहरों में ज्यादा आबादी होना और पेड़ों का कटना है। कहते हैं कि सीमेंटेड मकान बनने के कारण सीमेंट पर धूप का असर ज्यादा होता है जिसके कारण बादल ज्यादा बनते हैं और बरसते हैं। जिस वजह से पहाड़ों में जहां पेड़ों की आबादी होती है वहां अधिक बारिश के कारण ग्रामीण व शहरों में भूस्खलन आपदा का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि यदि इस आपदा को रोकना है तो सरकार को चाहिये कि वह सीमेन्ट के उत्पादन को रुकवाये जिससे इस धरती पर मनुष्य के अस्तित्व को बनाये रखा जा सके।

 

Ravikant Duklan (MA. MassCom )

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