अटल बिहारी वाजपेयी की दूसरी पुण्यतिथि, राष्ट्रपति कोविंद, PM मोदी सहित कई नेताओं ने दी श्रद्धांजलि, जानिए बाजपेई जी की जीवन शैली एवं कुछ रोचक बातें
नई दिल्ली: दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी की आज दूसरी पुण्यतिथि है। इस मौके पर आज अटल बिहारी वाजपेयी के स्मारक ‘सदैव अटल’ पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। इनके अलावा लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा ने भी ‘सदैव अटल’ पर उन्हें श्रद्धांजलि दी। वाजपेयी की पुण्यतिथि पर उनकी बेटी नमिता कौल भट्टाचार्य और पोती निहारिका ने भी उन्हें श्रद्धांजलि दी।
#WATCH Delhi: President Ram Nath Kovind, Vice President M Venkaiah Naidu & Prime Minister Narendra Modi pay tribute to former PM #AtalBihariVajpayee, on his death anniversary today at ‘Sadaiv Atal’ – the memorial of Atal Bihari Vajpayee. pic.twitter.com/pIaYOZFIMZ
— ANI (@ANI) August 16, 2020
Delhi: Late #AtalBihariVajpayee‘s daughter Namita Kaul Bhattacharya and granddaughter Niharika pay tribute to former Prime Minister at ‘Sadaiv Atal’, on his death anniversary today. pic.twitter.com/AQTB9EvyG3
— ANI (@ANI) August 16, 2020
जन्म, पढ़ाई और पत्रकारिता
अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा भी वहीं हुई लेकिन फिर आगे कि पढ़ाई कानपुर के डीएवी कॉलेज में हुई। यहां से उन्होंने राजनीतिक विज्ञान में MA किया और करियर के लिए चुनी पत्रकारिता। फिर, राष्ट्र धर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन का संपादन किया। लेकिन, नीयति को शायद ये मंजूर नहीं था। 1951 में भारतीय जन संघ की स्थापना हुई और अटल जी बने उसके संस्थापक सदस्य। इसी के साथ उन्होंने खबरों को संपादन बंद कर दिया, माने पत्रकारिता छोड़ दी। लेकिन, पत्रकारिता छोड़ने का मतलब ये नहीं होता कि कलम की धार मर जाए। उन्होंने कई कविताएं लिखीं।
राष्ट्रवादी राजनीति में कदम
उन्होंने पहली बार राष्ट्रवादी राजनीति में अपने छात्र जीवन के दौरान कदम रखा था। साल 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने भाग लिया था। लेकिन, तब शायद वो खुद को भविष्य में राजनेता के तौर पर परख नहीं पाए थे। लेकिन, वक्त ने उन्हें पहचान लिया था और भविष्य उनकी सियासी कुशलता और शैली को भारत के राजनीतिक रण में मंद-मंद गढ़ता देख मुस्कुराने लगा था। फिर, तमाम ऊपर लिखी गई घटनाओं से गुजरते हुए साल आया 1957 और उन्होंने लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ा। बलरामपुर से उन्हें जीत हासिल हुई।
चुनाव और सरकार
इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी नौ बार लोकसभा के लिए चुने गए और 1962 से 1967 और 1986 में वो राज्यसभा के सदस्य भी रहे। 1968 से 1973 तक भारतीय जन संघ के अध्यक्ष रहे। और, देश के 10वें प्रधानमंत्री भी बने। वह तीन बार प्रधानमंत्री बने, पहली बार 16 मई 1996 से 1 जून तक, दूसरी बार 19 मार्च 1998 से 26 अप्रैल 1999 तक और तीसरी बार 13 अक्टूबर 1999 से 22 मई से 2004 तक।
13 दिन की सत्ता से पांच साल तक का सफर
हालांकि, 16 मई 1996 को जब पहली बार वो प्रधानमंत्री बने, उसके 13 दिन बाद ही उनकी सरकार अल्पमत में आ गई और उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद 1998 तक वो लोकसभा में विपक्ष के नेता रहे। 1998 के आम चुनावों में गठबंधन की सरकार बनाई और वो फिर प्रधानमंत्री बने। हालांकि, इस बार भी उनकी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई और 13 महीनें ही चल सकी। लेकिन, उन्होंने एक बार फिर सरकार बनाई और ये साल था, 1999। अब वो लगातार दूसरी बार पीएम बने, ये पहला मौका था जब जवाहर लाल नेहरू के अलावा पहला कोई शख्स लगातार दो बार पीएम बना था। ये सरकार उन्होंने पूरे पांच साल चलाई।
भारत रत्न से सम्मानित
अब अटल जी हमारे बीच नहीं है। भारत के प्रति उनके निस्वार्थ समर्पण और पचास से अधिक सालों तक देश और समाज की सेवा करने के लिए 27 मार्च, 2015 को उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। इससे पहले उन्हें भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। वहीं, 1994 में उन्हें भारत का ‘सर्वश्रेष्ठ सांसद’ भी चुना गया।
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