18 से 20 जून तक कोटद्वार में होगा ”तरंगम” तन्वी रंग महोत्सव- मीनाक्षी शर्मा

18 से 20 जून तक कोटद्वार में होगा ”तरंगम” तन्वी रंग महोत्सव- मीनाक्षी शर्मा

एनसीपी न्यूज़। कोटद्वार। नजीबाबाद रोड स्थित एक स्थानीय होटल में तन्वी संस्था द्वारा एक पत्रकार वार्ता का आयोजन किया गया जिसमें संस्था की अध्यक्षा मीनाक्षी शर्मा ने बताया कि आगामी अठारह उन्नीस बीस जून 2023 को एक भव्य नाट्य समारोह ”तरंगम” तन्वी रंग महोत्सव किया जा रहा है जिसमें पूरे भारत वर्ष से 14 नाट्य दल प्रतिभाग कर रहे हैं। प्रतिदिन छह नाटकों का मंचन स्थानीय प्रेक्षागृह (कोटद्वार ऑडिटोरियम)में किया जाएगा। संस्था के सचिव प्रदीप भास्कर ने जानकारी दी कि संस्था इस आयोजन से क्षेत्र में रंगमंच एवं अभिनय शैली को जन जन तक पहुँचा सकेंगे, तन्वी नाट्य रंग महोत्सव में आने बाले नाट्य दल मुम्बई , आगरा ,गुजरात ,सोलन( हिमांचल ) फिरोजाबाद और भी उत्तराखंड ,मध्य प्रदेश ,आदि स्थानों से कोटद्वार आ रहे हैं।

तन्वी संस्था के अध्यक्षा मीनाक्षी शर्मा ने एनसीपी न्यूज़ से वार्ता करते हुए रंगमंच के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि जीवन को निखारता है रंगकर्म, थियेटर या रंगमंच जीवन के विविध रंगों को मंच पर प्रस्तुत करने की जीवंत विधा है,,,

रंगमंच में नृत्य, संगीत, चित्र, अभिनय सहित समस्त कलाओं और विभिन्न प्रकार के कौशलों का समावेश होता है, इसके साथ ही हम अपने जीवन में भी कई कौशल रंगकर्म के माध्यम से सीखते हैंं।
इसलिए अगर छोटी-सी नाटिका में भी हिस्सेदारी का अवसर मिले, तो उसे ज़रूर स्वीकार करें।

रंगमंच से जुड़ी प्रस्तुतियां इंसान को जीवन के ढेर सारे रंगों में भिगोकर निखार देती हैं। अगर किसी मंझे हुए निर्देशक के साथ छोटी-सी भूमिका भी निभाने को मिले और उसे आप पूरी शिद्दत से, मंचीय प्रस्तुति के हर पक्ष को समझने, सीखने और आत्मसात करने के तौर पर लेती हैं, तो आप अपने व्यक्तित्व में बड़ा निखार पाएंगी। क्या-क्या सिखाता है रंगमंच,,,

कपड़े पहनने का आत्मविश्वास

रंगमंच में कलाकार होने के नाते हर तरह की वेशभूषा को अपनाना पड़ता है। ऐसे में आपके अंदर हर तरह के कपड़े पहनने का आत्मविश्वास स्वत: ही आ जाता है। स्त्री होते हुए भी एक पुरुष का किरदार निभा सकती हैं और यही रचनात्मकता हमारी सोच में बदलाव पैदा करती है, जब हम जेंडर का किरदार निभाते हैं तो हम व्यक्तित्व का विकास करना सीखते है।

शारीरिक रूप से मज़बूती

रंगमंच में जब हम किरदारों को आकार देते हैं तब हमको लंबे समय तक काम करने की आवश्यकता होती है। रंगकर्म के अभ्यास से शरीर में लचीलापन, समन्वय, संतुलन और नियंत्रण बनता है। इसी तरह रंगमंच हमारे मन, दिल, दिमाग़ के अलावा हमारे शरीर के लिए भी बेहद लाभदायक है।

तनाव दूर करने में मददगार

अभिनय और नाटक में व्यक्ति भावनाओं को महसूस करना, व्यक्त करना, दूसरों की भावनाओं को समझना, भावनात्मक समस्याओं से निपटना सीखते हंै। रंगमंच सही वातावरण में मनुष्य के अंदर की आक्रामकता और तनाव को बाहर लाने मंे मदद करता है। युवाओं को जीवन जीने का ढंग सिखाता है और कठिन से कठिन स्थिति में भी हार न मानने के लिए प्रोत्साहित करता है। रंगमंच अवसाद से कहीं दूर ले जाता है। ये सकारात्मक ऊर्जा, अच्छी जीवन शैली और अनुशासन के महत्व से आपको रूबरू कराता है।

उच्चारण बेहतर होता है

किस डायलॉग को कैसे बोलना है, इसका बार-बार अभ्यास करना होता है। ऐसे में उच्चारण और स्वर का उतार-चढ़ाव यानी वॉइस मॉड्यूलेशन बेहतर होता है।
नया करने के लिए ऊर्जा का होना।

जब हम किरदारों को जीवित करते हैं तब लिखे हुए शब्दों को वास्तविकता में जन्म दे रहे होते हैं। यहां चरित्र को उसकी परिस्थितियों के हिसाब से, नाटक के किरदारों के साथ तालमेल रखते हुए और बेहतर करने की कोशिश करते हैं। हर बार नया और नया करने की होड़ में हम हमेशा सीखते रहते हैं कुछ नया। रंगमंच हमेशा बेहतर और नया करने की ऊर्जा पैदा करता है।

विश्लेषणात्मक सोच

हमारे जीवन में शिक्षा में कला का होना भी बहुत महत्वपूर्ण और उपयोगी है क्योंकि रंगमंच से विश्लेषणात्मक सोच, जीवन कौशल, टीम वर्क और बहुत कुछ नया करने को मिलता है, रंगमंच विधा में वह सब है जो आपको निजी और सार्वजनिक जीवन में जानना आवश्यक है क्योंकि शिक्षा में कला का प्रयोग अधिक रचनात्मक बनाता है।

जीवन में आत्मानुशासन आता है 

रंगमंच आपको बहुआयामी बनाता है आपके भीतर आत्मविश्वास पैदा करता है। संवाद अदायगी और भाव-भंगिमाएं सिखाती हैं कि किस तरह से भाव प्रकट किए जाएं। नव रस का उपयोग आपके निजी जीवन में भी आपके बर्ताव मेें फ़र्क़ पैदा करता है आप ख़ुद को अनुशासित कर पाते हैं। मन के बिखरेपन को समेटना सिखाता है।

कठिन अभ्यास करना सीखते हैं

रंगमंच विधा सहज कार्य नहीं हैं। लंबे समय तक मेहनत करने के बाद कोई भूमिका सार्थक बनती है और यही स्थिति एक नाट्य प्रस्तुति पर भी लागू होती है। रंगमंच या नाटक जीवन से कम नहीं है। यह जीने का तरीक़ा भी है।

Ravikant Duklan (MA. MassCom )

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